सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।
Monday, October 2, 2017
भावांजलि: हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता )
भावांजलि: हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता ): हाड़ मॉंस का था वो इंसान , रौशन जिसके कर्म से है जहान। प्रतिभा - निष्ठा कर देश के नाम सुदृढ़ राष्ट् बनाने का थ...
Wednesday, September 6, 2017
हिन्दी हैं हम (कविता )
देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान,
हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान।
बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार,
घर द्वार से बाहर भी कायम करने दो अधिकार।
कोकिला-सी मधुर है, मिश्री-सी हिन्दी बोली,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सबकी हमजोली।
भिन्नता में भी है, यह एकता दर्शाती,
लाखों करोंड़ों भारतीय दिलों में है,जगह बनाती।
दोहा, कविता, कहानी, उपन्यास, छंद,
हिन्दी भाषी कर लो अपनी आवाज बुलंद।
स्वर-व्यंजन की सुंदर यह वर्णशाला,
सुर संगम-सी मनोरम होती वर्णमाला।
निराला, दिनकर, गुप्त, पंत, सुमन,
जिनसे महका है, हिन्दी का शोभित चमन।
आओ तुम करो समर्पित अपना तन मन,
सींचो बगिया, चहक उठे हिन्दी से अपना वतन।
----- अर्चना सिंह जया
[ 12 सितम्बर 2009 राष्ट्रीय सहारा ‘जेन-एक्स’ में प्रकाशित ]
Monday, September 4, 2017
Happy Teachers' Day. [POEM]
नमन है श्रद्धा सुमन (कविता)
सतकर्म कर जीवन किया है जिसने समर्पित,
उन्हीं के मार्ग पर चल, उन्हें करना है गर्वित।
माता -पिता व गुरुजनों का मान बढ़ाया जिसने,
अब कर जोड़, शीश नमन उन्हें करना है हमने।
वतन को अब रहेगा सदैव उन पर अभिमान ,
बच्चे ही नहीं बड़े भी उन्हें करते हैं सलाम।
‘भारत रत्न 'भी कहलाए श्री अब्दुल कलाम,
श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे, मानव उम्र तमाम ।
वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, मार्गदर्शक भी कहलाए वे,
भारतीय होने के सभी फर्ज शिद्द्त से निभाए वे।
‘मिशाइल मैन ' के खिताब से भी नवाजा गया,
व्यक्तित्व जिसका वतन का दामन महका गया ।
जमीं का तारा आसमॉ का सितारा हो गया ।
मानवता का पाठ पढ़ाकर शून्य में विलीन हो गया ।
उदारता से परिपूर्ण था, हृदय जिसका सदा,
सर्वोच्च शिखर प्राप्त हो ऐसा व्रत लिया ।
लगन औ मेहनत के मिशाल बने स्वयं वे,
जो न सोने दे, ऐसा स्वप्न सदैव देखा किए ।
सुनहरे सफर में ‘अग्नि ,‘पृृथ्वी और ‘आकाश साकार किया,
‘सुपर पावर राष्ट् हो, सोच पूर्ण योगदान दिया ।
सादा जीवन उच्च विचार का आभूषण धारण कर,
सम्पूर्ण जीवन देश के नाम न्योछावर किया ।
युवाजन अब चलो उठो, प्रज्ज्वलित करो मशाल
स्वर्णिम भारत का मन में अब कर लो विचार ।
जो समााज का स्वेच्छा से करते हैं उद्धार,
ऐसे शिक्षकों को है हमारा बरहम् बार प्रणाम ।
[ श्री ए पी जे अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि]
---------- अर्चना सिंह ‘जया’
---------- अर्चना सिंह ‘जया’
Monday, August 14, 2017
जय जय नन्दलाल कविता
जय जय नन्दलाल
लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का
विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप का।
वासुदेव व देवकी को दिए, कंस ने कारावास,
जन्माष्टमी के दिन ही जन्मे बाल गोपाल।
द्वापर में जन्में, देवकी के गर्भ से,
धन्य हुई भूमि, देवों के आशीष से।
कारागार से वासुदेव ले, टोकरी गोपाल की।
चले यमुना पार वे गोकुल धाम को,
नन्द को सौंप आए, अपने ही पूत को।
कंस से दूर किया, देवकी के लाल को,
यशोदा धन्य हुई, पाकर गोपाल को।
वात्सल्य प्रेम का अमृत पान करा,
पालने को झुलाती, मुख को चूम के।
लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
नन्द -यशोदा के आँगन के पुष्प से,
महका गोकुल वृंदावन नवागन्तुक से।
ओखल पर पाँव रख माखन चुराए लिए,
'माखनचोर'नाम से गोपीजन पुकारते।
नटखट लाल की बालक्रीडा निहारती,
गोपियों की शिकायत, माँ बिसारती।
गोकुल में पूतना और नरकासुर वध से
अचम्भित कर दिया, अपने ही कर्म से।
लाल को अबोध जान, विचलित मन हुआ
मुख में ब्रह्माण्ड देख, माँ को अचरज हुआ।
लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
यमुना के तट, कदम के डार पर
मधुर तान छेड़, मुरलीधर मन मोहते।
दर्शन मात्र से जीवन हो जाए धन्य,
जो भज मन राधेकृष्ण राधेकृष्ण।
कालिया फन पग धर, कंदुक ले हाथ में
प्रकट हुए श्याम मधुर मुस्कान ले।
सहज जान कर, गोवर्धन उठाए लिए
इंद्र के प्रकोप से, सबको प्राण दान दिए।
अर्जुन संग सुभद्रा को ब्याह कर
भ्राता का फर्ज भी, निभाए मुस्कुरा कर।
शंख, चक्र, गदा, पद्म ,पिताम्बर
व वनमाला से कन्हैया शोभित हो,
रूक्मिणी, सत्यभामा संग ब्याह किए।
लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
कृष्ण की दिवानी भई, मीरा प्रेमरंग के
गोपियों संग स्वांग रचे, राधा प्रेम रंग के।
कर्म को धर्म मान सबका उपकार किए
द्रौपदी का चीर बढ़ा, रिण उतार दिए।
मुट्ठी भर चावल ले, मित्रता का मान किए
सर्वस्व दान दे, सुदामा को तार दिए ।
घर्म, करूणा, त्याग, ज्ञान पाठ पढ़ा चले
प्रेम मार्ग समस्त जगत को दर्शा चले।
जीवन का सार वे अर्जुन को बता दिए,
कर्म से ही धर्म है जुडा, ऐसा ही ज्ञान दिए।
लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
जन्माष्टमी को मंगलगीत गा, जय जयकार करो ।
...... अर्चना सिंह जया
जन्माष्टमी के सुअवसर पर आप लोगों को हार्दिक शुभ कामनाएँ।
Friday, July 28, 2017
Wednesday, July 19, 2017
Monday, July 17, 2017
जी ले इस पल [ कविता ]
आज अभी जी ले चल,
समय कहता हुआ निकल गया।
चलना है तो संग मेरे चल,
वरना मैं नहीं रुकूॅंगा इक पल।
वक्त की पुकार सुनती थी पल-पल।
चाहत हुई उसे थामने की ,
रेत-सा फिसल गया आज-कल।
न थाम पाई हाथ उसका
आज, न जाने कैसे यूॅं निकल गया ?
वक्त सा बेवफा हुआ न कोई,
चार कदम आगे रहा सदा यूॅं ही।
कोशिश कर रही थी चलने की,
तभी लम्हा भागता आया वहाॅं।
‘‘मैं हॅूं अभी यहीं, जो जी ले इस पल
न ठहर पाऊॅंगा मैं यहाॅं दो पल
आज अभी मैं हूॅं संग तेरे
कल रहूॅगा मैं न जाने किधर ?’’
मेरी चाहत तुम्हें सताएगी,
पछताता फिरेगा इधर-उधर।
जो गुजरा मैं आज,न लौटूूॅंगा कल।
कल, आज और कल के दल-दल से
तू हो सके तो निकल चल।
अरमानों को न यूॅं मसल,
आज अभी जी ले चल।
........ अर्चना सिंह जया
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