देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान,
हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान।
बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार,
घर द्वार से बाहर भी कायम करने दो अधिकार।
कोकिला-सी मधुर है, मिश्री-सी हिन्दी बोली,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सबकी हमजोली।
भिन्नता में भी है, यह एकता दर्शाती,
लाखों करोंड़ों भारतीय दिलों में है,जगह बनाती।
दोहा, कविता, कहानी, उपन्यास, छंद,
हिन्दी भाषी कर लो अपनी आवाज बुलंद।
स्वर-व्यंजन की सुंदर यह वर्णशाला,
सुर संगम-सी मनोरम होती वर्णमाला।
निराला, दिनकर, गुप्त, पंत, सुमन,
जिनसे महका है, हिन्दी का शोभित चमन।
आओ तुम करो समर्पित अपना तन मन,
सींचो बगिया, चहक उठे हिन्दी से अपना वतन।
----- अर्चना सिंह जया
[ 12 सितम्बर 2009 राष्ट्रीय सहारा ‘जेन-एक्स’ में प्रकाशित ]
No comments:
Post a Comment
Comment here