भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Monday, October 28, 2019

पर्व है दीपों का

›
      पर्व है दीपों का दिवाली की अगली भोर , देख मैं रह गया भौंचक्का। बालकनी के कोने में, सहमा कपोत मैंने देखा। रात्रि के अंधिया...
Thursday, October 17, 2019

मैंने क्या किया ?

›
मैंने किया क्या ? सच तो है आज उम्र के इस पड़ाव पर पूछा गया है प्रश्न तुमने किया क्या? एक घर को छोड़ आई नए मकान को घर बनाई। और मैंने ...
Saturday, October 12, 2019

मेरा बचपन ( बाल कविता )

›
कहाँ गया वह? भोला बचपन। कागज़ की कश्ती से ही खुश हो जाया करते थे हम। मिट्टी के गुड्डे गुड़ियों संग, सदा खेला करते थे हम। कहाँ गया वह? ...
Wednesday, October 2, 2019

भावपूर्ण श्रद्धांजलि

›
हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता )   हाड़   मॉंस   का   था   वो   इंसान , रौशन   जिसके   कर्म   से   है   जहान। प्रतिभा - निष्ठा  ...
Sunday, September 22, 2019

हे मानव

›
अंधियारे से सीख, हे मानव जीवन इतना भी सरल नहीं जो अब भी न सीख सका तो खो कर पाने का अर्थ नहीं। धन, मकान,अहम् धरा रहेगा जाएगा कुछ तेरे स...
Saturday, September 14, 2019

हिन्दी दिवस .

›
हिन्दी हैं हम (कविता ) देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान, हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान।  बंद दीवारों में ही न करना इस...
Thursday, September 12, 2019

तुझी से

›
तुझ से हैं साँसे मेरी तुझ से है ज़मीं आसमाँ। तुझ से है दिन रौशन तुझ से ही है रातें जवाँ। तुझ से है महकती शाम तुझ से सजते हैं अरमाँ। गी...
‹
›
Home
View web version

About Me

My photo
Archana Singh
View my complete profile
Powered by Blogger.