भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Friday, July 28, 2017

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http://matrubharti.com/book/read/10385/ यहाँ पर 100 शब्दों में लिखी , मेरी दो कहानियाँ हैं। अर्चना सिंह 'जया'
Wednesday, July 19, 2017

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http://matrubharti.com/book/read/10385/ Here some Love Stories are in 100 words.  Archana Singh jaya'
Monday, July 17, 2017

जी ले इस पल [ कविता ]

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          आज अभी जी ले चल, समय कहता हुआ निकल गया। चलना है तो संग मेरे चल, वरना मैं नहीं रुकूॅंगा इक पल। वक्त की पुकार सुनती थी पल-पल। ...
Wednesday, July 5, 2017

मेरा अक्स [ कविता ]

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मेरा अक्स एक दिन लगा था,मुझे देखने। देख मेरी आॅंखों में फिर लगा वो कहनेे, ‘ मेरे जैसा है तू।’ मैं मंद-मंद हंसी और बोली,‘ तू तो मेरा...
Sunday, March 12, 2017

होली है

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                      होली है  कविता चलो फिर से गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है। पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है। जीवन को आनंद...
Thursday, March 9, 2017

नारी तू सशक्त है [ कविता ]

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                नारी तू सशक्त है। बताने की न तो आवश्यकता है न विचार विमर्श की है गुंजाइश। निर्बल तो वह स्वयं है, जो तेरे सबल होने से ह...
Wednesday, March 1, 2017

सत्ता की चाहत न देखी,हमनें ऐसी [ कविता ]

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चुनावी रंग अभी सब पर है छाया ये कैसी होली खेल रहे हो भाया ? धैर्य तो रखो जरा, माना है फागुन आया रंगों की जगह कीचड़ फेंक रहे हो, यह कैस...
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