भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Saturday, July 30, 2016

नूतन आशियॉं ( कविता )

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बारिश से बचने की कोशिश में कपोत छज्जे पर आती थी। धूप में रखे सरसों व चावल चिड़िया चुगकर उड़ जाती थी। अमिया पर बैठ ऑंगन में काली कोयल ग...
Saturday, July 23, 2016

पाठशाला से जब घर जाते बच्चे ( कविता )

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मेघ देख शोर मचाते बच्चे, पाठशाला से जब घर जाते बच्चे। छप-छप पानी में कूद लगाते, कीचड़ में खुद को डुबोते। रिम-झिम बारिश की बॅूंदों में ...
Thursday, July 21, 2016

तुलिका और मैं... (Paintings)

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Tuesday, July 19, 2016

इकलौती पत्नी ( कहानी )

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आज की शाम एक अजीब-सा एहसास लिए हुए है। ऐसा लग रहा है कि फिर वही बेबस शाम जीवन में दस्तक दे रही है जिसने मुझे हिलाकर रख दिया था। वैसे देखा ...
Saturday, July 16, 2016

पिता की व्यथा ( कविता )

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दहेज रूपी कैसी है ये प्रथा? हर बेटी के पिता के मन की यह बन चुकी है व्यथा। लेन देन के नाम पर व्यापार करते, अपने ही हाथों अपने संस्कारों ...
Sunday, July 10, 2016

सोच को दो नई दिशा

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.                                                                                           बेटी के लिए ही क्यों ? बेटों के लिए हमारी सोच...
Tuesday, July 5, 2016

धरती हिली आसमान फटा

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    धरती हिली,आसमान फटा अजीब सा एहसास हुआ। प्राकृतिक विपदाओं को देख, मानव  ह्रदय यूॅं कॉंप उठा। नभ का हिय छलनी हुआ, धरा का तन तार-ता...
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