भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Monday, May 30, 2016

जीवन मजाक नहीं (कविता)

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वास्तविकता से परे हम नहीं रह सकते, बनावटी जीवन, पर्दे पर ही सीमित हो सकते। सच्चाई से मुख मोड़कर, नहीं अग्रसर हो पाएँगें, पर दूरदर्शन पर ...
Sunday, May 29, 2016

हिन्दी हैं हम (कविता )

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देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान, हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान।  बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार, घर द्वार से बाहर भी ...
Friday, May 27, 2016

डोली चढ़ना जानूँ हूँ (कहानी)

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                                                                कहानी                                                               संध...
Tuesday, May 24, 2016

धरा की पुकार (कविता)

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मुझे बचाओ मैं !                खतरे में हूँ और आप भी । पृृथ्वी रह-रहकर गुहार है लगाती मैं ही तुम्हारी पालन हार रक्षा का व्रत लो न करो...
Sunday, May 22, 2016

नमन है श्रद्धा सुमन (कविता)

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सतकर्म कर जीवन किया है जिसने समर्पित, उन्हीं के मार्ग पर चल, उन्हें करना है गर्वित। माता -पिता व गुरुजनों का मान बढ़ाया जिसने, अब कर जोड़...
Saturday, May 21, 2016

खुला आसमान (कहानी)

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कहानी                          संध्या की बेला और बाहर हल्की बारिश , मैं खिड़की से सटी हुई पलंग पर बैठी बाहर देख रही थी। पत्तों पर गिरती प...

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (कविता)

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हम ही हैं माँ का गर्व,           हम ही हैं पिता का गौरव । मान-सम्मान है हमीं से तुम्हारा हौसला और गुरूर हमीं से। बुलंदियों को छूना जान...
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