" मैं तुम्हें फिर मिलूँगी "
मुझे है यकीन ,मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।
अगले जनम में ही सही माँ,
तेरी कोख से ही जन्मूँगी।
माना कि तू मजबूर थी,
सामाजिक कुरीतियों की शिकार थी।
पर मेरा क्या दोष बता माँ,
क्यों जग को नहीं भाया मेरा आना?
मुझे भी था खेलना दौड़ना,
देखना था बाबुल का अंगना।
आंगन की धूल भी तो न ले जाती,
मायका- सासरे को सँवारती।
काश! मैं भी पहन जो पाती,
पिया के हाथों सुहाग का कंगना।
मुझे है यकीन,
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।
आवाज लगाना माँ तू मुझको,
तेरी परछाई बनकर लौटूँगी।
लड़ना है अपने अधिकार की खातिर,
संग-संग तेरे अस्तित्व का भी मान रखूँगी।
बाबा का ही मात्र नहीं माँ,
गाँव,शहर,राष्ट्र का नाम रौशन करूँगी।
पुत्र के संग-संग मैं पलूंगी,
पुत्री हूं, घर की फुलवारी में सजूँगी।
भ्रूण हत्या न करना बाबा,
ईश्वर से मांग लाना मुझको,
माफी मैं खुश होकर दे दूँगी,
हाँ, मैं तुम्हें फिर जरूर मिलूँगी।
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