Friday, July 28, 2017

http://matrubharti.com/book/read/10385/
यहाँ पर 100 शब्दों में लिखी , मेरी दो कहानियाँ हैं।

अर्चना सिंह 'जया'

Wednesday, July 19, 2017



http://matrubharti.com/book/read/10385/
Here some Love Stories are in 100 words. 
Archana Singh jaya'

Monday, July 17, 2017

जी ले इस पल [ कविता ]

         
आज अभी जी ले चल,
समय कहता हुआ निकल गया।
चलना है तो संग मेरे चल,
वरना मैं नहीं रुकूॅंगा इक पल।
वक्त की पुकार सुनती थी पल-पल।
चाहत हुई उसे थामने की ,
रेत-सा फिसल गया आज-कल।
न थाम पाई हाथ उसका
आज, न जाने कैसे यूॅं निकल गया ?
वक्त सा बेवफा हुआ न कोई,
चार कदम आगे रहा सदा यूॅं ही।
कोशिश कर रही थी चलने की,
तभी लम्हा भागता आया वहाॅं।
‘‘मैं हॅूं अभी यहीं, जो जी ले इस पल
न ठहर पाऊॅंगा मैं यहाॅं दो पल
आज अभी मैं हूॅं संग तेरे
कल रहूॅगा मैं न जाने किधर ?’’
मेरी चाहत तुम्हें सताएगी,
पछताता फिरेगा इधर-उधर।
जो गुजरा मैं आज,न लौटूूॅंगा कल।
कल, आज और कल के दल-दल से
तू हो सके तो निकल चल।
अरमानों को न यूॅं मसल,
आज अभी जी ले चल।        
               
                                                  ........ अर्चना सिंह जया


Wednesday, July 5, 2017

मेरा अक्स [ कविता ]


मेरा अक्स एक दिन
लगा था,मुझे देखने।
देख मेरी आॅंखों में
फिर लगा वो कहनेे,
‘ मेरे जैसा है तू।’
मैं मंद-मंद हंसी और
बोली,‘ तू तो
मेरा प्रतिबिम्ब है।’
तू मुझ-सा है,
मैं तूझ-सा नहीं।’
फिर क्या था ?
अक्स इठलाया
आॅंखों में चमक लिए
मुझे गर्व से चिढ़ाया।
और लगा कहने,
‘तू तो पीड़ा हिय में छुपा,
नकाब पहने हुए है।
मुख पर हंसी और
मन में भाव दबाए हुए है।’
और लगा कहने
‘मैं तो  हूँ  ही अक्स तेरा
चाह कर भी न हँस सका
और न दे सका स्वप्न  सुनहरा।’
किंतु मैं नित
देख सकता हॅूं वो दर्द गहरा
अब बता कि
तू मुझमें है कि मैं तुझमें हूॅं
क्या रिश्ता नहीं है ?
हम दोनों का गहरा।
गर दर्पण का न होता पहरा
तो जीवन में ,मैं भर देता
खुशियों का रंग गहरा।

                              अर्चना सिंह‘जया’