सुनो सुनाता हूॅु मैं, राजस्थान की अमर कहानी,
राजाओं ने देश की खातिर दे दी अपनी कुर्बानी ।
नर-नारी के ऑंखों में थी, अलमस्त रवानी,
वीरांगनाएॅं भी कम न थीं, नन्हें वीर और थे सेनानी।
जहॉं स्त्रियों ने दिखाया जौहर और व्रत करना सीखा,
तिलक लगा कर पुरुषों को युद्ध भूमि में भेजा।
ऊॅटों की टोली है चलती काफिला ले कर संग ,
जोधपुर, जैसलमेर,बीकानेर ,जयपुर जैेसे कई समेटे रंग।
उगता सूरज , ढ़लती शाम रेत पर बिखेरे सुनहरे रंग,
पुश्कर के मेले में देख ठुमकती कठपुतली,
दिल में कितने राज छुपाए, ऑंखों से ही कह चली।
ढोल मजीरे बाजे-गाजे जैसे सजी चली हो पालकी ,
नई नवेली दुल्हन के हाथों, तिलक सजी थाल की।
केसरिया, हरा, पीला, नीला ,गुलाबी चुनरी के रंग
माथे से कंधे पर लहराती, गाती पवन के संग-संग ।
राजस्थान की शोभा देखो, मन को है लुभाती
जीवन खुशियों से हरपल है, भर-भर जाती ।
............ अर्चना सिंह जया
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