Monday, August 14, 2017

जय जय नन्दलाल कविता

जय जय नन्दलाल

लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का
विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप  का।
वासुदेव व देवकी को दिए, कंस ने कारावास, 
जन्माष्टमी के दिन ही जन्मे बाल गोपाल।
द्वापर में जन्में, देवकी के गर्भ से,
धन्य हुई भूमि, देवों के आशीष से।
कारागार से वासुदेव ले, टोकरी गोपाल की।
चले यमुना पार वे गोकुल धाम को,
नन्द को सौंप आए, अपने ही पूत को।
कंस से दूर किया, देवकी के लाल को,
यशोदा धन्य हुई, पाकर गोपाल को।
वात्सल्य प्रेम का अमृत पान करा,
पालने को झुलाती, मुख को चूम के।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
नन्द -यशोदा के आँगन के पुष्प से,
महका गोकुल वृंदावन नवागन्तुक से।
ओखल पर पाँव रख माखन चुराए लिए,
'माखनचोर'नाम से गोपीजन पुकारते।
नटखट लाल की बालक्रीडा निहारती,
गोपियों की शिकायत, माँ बिसारती।
गोकुल में पूतना और नरकासुर वध से
अचम्भित कर दिया, अपने ही कर्म से।
लाल को अबोध जान, विचलित मन हुआ
मुख में ब्रह्माण्ड देख, माँ को अचरज हुआ।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
यमुना के तट, कदम के डार पर
मधुर तान छेड़, मुरलीधर मन मोहते।
दर्शन मात्र से जीवन हो जाए धन्य,
जो भज मन राधेकृष्ण राधेकृष्ण।
कालिया फन पग धर, कंदुक ले हाथ में
प्रकट हुए श्याम मधुर मुस्कान ले।
सहज जान कर, गोवर्धन उठाए लिए
इंद्र के प्रकोप से, सबको प्राण दान दिए।
अर्जुन संग सुभद्रा को ब्याह कर
भ्राता का फर्ज भी, निभाए मुस्कुरा कर।
शंख, चक्र, गदा, पद्म ,पिताम्बर
व वनमाला से कन्हैया शोभित हो,
रूक्मिणी, सत्यभामा संग ब्याह किए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
कृष्ण की दिवानी भई, मीरा प्रेमरंग के
गोपियों संग स्वांग रचे, राधा प्रेम रंग के।
कर्म को धर्म मान सबका उपकार किए
द्रौपदी का चीर बढ़ा, रिण उतार दिए।
मुट्ठी भर चावल ले, मित्रता का मान किए
सर्वस्व दान दे, सुदामा को तार दिए ।
घर्म, करूणा, त्याग, ज्ञान पाठ पढ़ा चले
प्रेम मार्ग समस्त जगत को दर्शा चले।
जीवन का सार वे अर्जुन को बता दिए,
कर्म से ही धर्म है जुडा, ऐसा ही ज्ञान दिए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
 जन्माष्टमी को मंगलगीत गा, जय जयकार करो ।


                      ...... अर्चना सिंह जया
जन्माष्टमी के सुअवसर पर आप लोगों को हार्दिक शुभ कामनाएँ।

Friday, July 28, 2017

http://matrubharti.com/book/read/10385/
यहाँ पर 100 शब्दों में लिखी , मेरी दो कहानियाँ हैं।

अर्चना सिंह 'जया'

Wednesday, July 19, 2017



http://matrubharti.com/book/read/10385/
Here some Love Stories are in 100 words. 
Archana Singh jaya'

Monday, July 17, 2017

जी ले इस पल [ कविता ]

         
आज अभी जी ले चल,
समय कहता हुआ निकल गया।
चलना है तो संग मेरे चल,
वरना मैं नहीं रुकूॅंगा इक पल।
वक्त की पुकार सुनती थी पल-पल।
चाहत हुई उसे थामने की ,
रेत-सा फिसल गया आज-कल।
न थाम पाई हाथ उसका
आज, न जाने कैसे यूॅं निकल गया ?
वक्त सा बेवफा हुआ न कोई,
चार कदम आगे रहा सदा यूॅं ही।
कोशिश कर रही थी चलने की,
तभी लम्हा भागता आया वहाॅं।
‘‘मैं हॅूं अभी यहीं, जो जी ले इस पल
न ठहर पाऊॅंगा मैं यहाॅं दो पल
आज अभी मैं हूॅं संग तेरे
कल रहूॅगा मैं न जाने किधर ?’’
मेरी चाहत तुम्हें सताएगी,
पछताता फिरेगा इधर-उधर।
जो गुजरा मैं आज,न लौटूूॅंगा कल।
कल, आज और कल के दल-दल से
तू हो सके तो निकल चल।
अरमानों को न यूॅं मसल,
आज अभी जी ले चल।        
               
                                                  ........ अर्चना सिंह जया


Wednesday, July 5, 2017

मेरा अक्स [ कविता ]


मेरा अक्स एक दिन
लगा था,मुझे देखने।
देख मेरी आॅंखों में
फिर लगा वो कहनेे,
‘ मेरे जैसा है तू।’
मैं मंद-मंद हंसी और
बोली,‘ तू तो
मेरा प्रतिबिम्ब है।’
तू मुझ-सा है,
मैं तूझ-सा नहीं।’
फिर क्या था ?
अक्स इठलाया
आॅंखों में चमक लिए
मुझे गर्व से चिढ़ाया।
और लगा कहने,
‘तू तो पीड़ा हिय में छुपा,
नकाब पहने हुए है।
मुख पर हंसी और
मन में भाव दबाए हुए है।’
और लगा कहने
‘मैं तो  हूँ  ही अक्स तेरा
चाह कर भी न हँस सका
और न दे सका स्वप्न  सुनहरा।’
किंतु मैं नित
देख सकता हॅूं वो दर्द गहरा
अब बता कि
तू मुझमें है कि मैं तुझमें हूॅं
क्या रिश्ता नहीं है ?
हम दोनों का गहरा।
गर दर्पण का न होता पहरा
तो जीवन में ,मैं भर देता
खुशियों का रंग गहरा।

                              अर्चना सिंह‘जया’

Sunday, March 12, 2017

होली है


                      होली है  कविता
चलो फिर से
गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है।
पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है।
जीवन को आनंद के रंग में भिंगो ली,
अमिया पर बैठी कोयल है बोली,
‘चलो बंधुजन मिल खेले होली।’
चिप्स, नमकीन, गुझिया, दहीबड़े
दिल को भाते हैं पकवान बड़े।
ढोल, मजीरे मिलकर बजाते हैं
चलो फिर से
फगुआ मिलकर गाते हैं
पौराणिक कथाएॅं गुनगुनाते हैं।
अबीर संग सभी झूमते गाते हैं
‘फागुन का ऋतु सभी को भाता,
गाॅंव-गाॅंव है, देखो फगुआ गाता।’
अंग-अंग अबीर के रंग में डूबा,
तन-मन स्नेह रंग में भींगा।
लाल, नीली, हरी, पीली
सम्पूर्ण धरा रंग-बिरंगी हो - ली।
गिले-सिकवे भूले, सखा-सहेली
सकारात्मकता का प्रचार करती आई, होली।
गुलाल संग बोलो-होली है, होली।

                ............... अर्चना सिंह जया
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

Thursday, March 9, 2017

नारी तू सशक्त है [ कविता ]

               
नारी तू सशक्त है।
बताने की न तो आवश्यकता है
न विचार विमर्श की है गुंजाइश।
निर्बल तो वह स्वयं है,
जो तेरे सबल होने से है भयभीत।
नारी तू सशक्त है
धर्म-अधर्म की क्या कहें?
स्त्री धर्म की बातें ज्ञानी हैं बताते
पुरुष धर्म की चर्चा कहीं,
होती नहीं कभी अभिव्यक्त है।
नारी तू सशक्त है।
देवी को पूजते घरों में,
पर उपेक्षित होती रही फिर भी।
मान प्रतिष्ठा है धरोहर तेरी,
अस्तित्व को मिटाती औरों के लिए
नारी तू सशक्त है /
तू ही शारदा ,तू लक्ष्मी,तू ही काली
धरा पर तुझ-सी नहीं कामिनी।
तेरे से ही सृष्टि होती पूर्ण यहाॅं,
भू तो गर्व करता रहेगा सदा।
नारी तू सशक्त रही
और तू सशक्त है सदा।

                 -------------  अर्चना सिंह जया

' महिला दिवस ' पर सभी नारियों को समर्पित  /