सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।
Wednesday, June 21, 2023
जिंदगी
Friday, September 23, 2022
उम्मीद की लौ
जीवन में हो तमस घना, तो उम्मीद की लौ जला लेना।
निराशा के तम को कभी ना, दिल का कोई कोना देना
आशा-उम्मीद के दीपक से कठिन राह जगमग कर लेना।
हिय में छुपाए आत्मविश्वास को तू बोझिल ना होने देना,
किसी रोते को हँसाकर भी,अपना मन हल्का कर लेना।
रात्रि के पश्चात ही नई आशा का सूरज सदा उदय होता,
जुगनू से सीख गहन अंधेरे में भी कैसे है चलते रहना,
जीवन में हो तमस घना, तो उम्मीद की लौ जला लेना।
जिंदगी के सुहाने सफर में, धूप-छाँव से ना कभी डरना।
बाहर के अंधकार से पूर्व, मन के तिमिर को दूर करना।
ज्ञान की मशाल जलाए चल, कर रौशन जग का कोना
अज्ञान के तम को मिटा, मानवजन को जागृत करना।
लोभ-ईर्ष्या-द्वेष, छल-कपट-अहम् का दहन कर देना,
दया-प्रेम-सद्भाव का दीप प्रज्ज्वलित कर चलते रहना।
जीवन में हो तमस घना, तो उम्मीद की लौ जला लेना।
Tuesday, August 30, 2022
न्याय की गुहार
Sunday, May 8, 2022
मां
मां ऐसी होती है।
अपने अश्रु को छुपा,
सदा मुस्कान बिखेरती है।
अपने सपनों को दफना कर
बच्चों को स्वप्न पर देती है।
मां ऐसी होती है।
अपनी थाली को परे रख
बच्चों को भोजन परोसती है।
अपनी नींद से हो बेपरवाह
बच्चों को लोरी-थपक्की देती है।
मां ऐसी होती है।
हाथों के छाले को ढंक कर,
चाव से रोटी सेंका करती है।
स्वयं के भावों को छुपा
बच्चों के जीवन में रंग भरती है।
मां ऐसी होती है।
बिस्तर गीला गर हो मध्य रात्रि
सूखे नर्म बिस्तर हमें देती है।
तेज़ तपते हुए ज्वर में
पानी की पट्टी रख सिरहाने होती है।
मां ऐसी होती है।
जाने कैसे वह बिन कहे
मन के भाव सदा पढ़ लेती है।
गर अंधियारा छाये जीवन में
थाम हाथ राह रौशन करती है।
मां ऐसी होती है।
कभी सख्त मन से डांट लगा
खुद भी रोया करती है।
कभी नीम सी कड़वी तो
कभी शहद सी मीठी बातें करती है।
मां ऐसी होती है।
मां धरती सी,कोमल पुष्प सी
चंदन बन महका करती है।
हिय विशाल है उसका जहां
ममता,स्नेह,प्रेम,दया,क्षमा समेटे रखती है।
* अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मां ऐसी होती है।
Wednesday, January 5, 2022
Wednesday, December 29, 2021
मैं और मेरी चाय
" मैं और मेरी चाय "☕
मैं और मेरी चाय आपस में अक्सर ये बातें करती हैं,
तन्हाई में सवाल, मुझसे पूछा करती है।
मैं नहीं होती तो प्रातः,तू करती किसका इंतज़ार ?
कोमल हाथों के स्पर्श का प्रतिदिन, मुझे रहता इंतज़ार।
होंठो से लेती हर सिप में महसूस होता है प्यार ,
सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी रहता, तुम्हारा इंतज़ार।
मैं सिर्फ चाय नहीं ,हूँ तुम्हारा प्यार, संगी साथी, सहचर,
तुम्हारे सुख में और दुख में भी नहीं छोड़ती साथ।
सच ही कह रही हो - डीयर चाय
बिस्कुट, सैंडविच,आलू पराठे,पकौड़े संग भी
निभाती आई हो अपना साथ।
गुन गुनी गर्मागर्म भाती हो हर बार,
शीत काल में तुम सा नहीं कोई यार।
जितनी भी तारीफ करूँ कम लगती हर बार ,
रिश्तों से मिले दर्द अपनों से मिली रुसवाई में भी
कभी भी प्याली ने नहीं छोड़ा साथ।
चाहे ऋतु हो जो कोई भी या हो दिन-रात,
थाम हाथ में महसूस होता,
जैसे दूर करती हो तन्हाई और हर लेती पीर।
अंतर्मन पुलकित हो उठता और
आंखों में झलक उठता मधुर प्यार।
मैं और मेरी चाय प्यारी,हमजोली है मेरे जीवन की।