मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
तम को दूर कर,
मन में विश्वास भर।
औरों के जीवन को
प्रकाशित हूँ करती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
ना मैं मुश्लिम,ना हिन्दू
मैं आशा को
प्रज्ज्वलित करती।
उल्लास लिए,
जन-जन में
चेतना भरती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
जब अंधकार हो
चहुँ ओर घना,
तब प्रकाश का
चादर फैलाकर
दामन में हूँ लेती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
मैं रोशनी हूँ।
तम को दूर कर,
मन में विश्वास भर।
औरों के जीवन को
प्रकाशित हूँ करती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
ना मैं मुश्लिम,ना हिन्दू
मैं आशा को
प्रज्ज्वलित करती।
उल्लास लिए,
जन-जन में
चेतना भरती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
जब अंधकार हो
चहुँ ओर घना,
तब प्रकाश का
चादर फैलाकर
दामन में हूँ लेती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।