पानी का कोई रंग नहीं,
पवन का कोई धर्म नहीं।
भूख की कोई मज़हब नहीं,
रोटी की कोई जाति नहीं।
सूर्य की किरणों से सीखो,
चाँद की चाँदनी को देखो।
राह दर्शाती जन-जन को,
रौशन करती जनमन को।
ढाई आखर प्रेम-कर्म ही,
है मानवता का धर्म यही।
नदी की सरलता तो देखो,
सागर की गहराई को समझो
नित सीखो आगे बढ़ना ।
जीवन सार्थक बनाकर,
चल सदकर्म के राह पर।
सदाचार व परोपकार से
प्राप्त जीवन को थन्य बना।
पवन का कोई धर्म नहीं।
भूख की कोई मज़हब नहीं,
रोटी की कोई जाति नहीं।
सूर्य की किरणों से सीखो,
चाँद की चाँदनी को देखो।
राह दर्शाती जन-जन को,
रौशन करती जनमन को।
ढाई आखर प्रेम-कर्म ही,
है मानवता का धर्म यही।
नदी की सरलता तो देखो,
सागर की गहराई को समझो
नित सीखो आगे बढ़ना ।
जीवन सार्थक बनाकर,
चल सदकर्म के राह पर।
सदाचार व परोपकार से
प्राप्त जीवन को थन्य बना।