Monday, March 9, 2020

गुलाल संग

 गुलाल संग

आओ चलो
फागुन का आनंद लें।
इस होली फिर
जीवन में रंग भरें।.
संग गुलाल के
रंग प्रेम का,
रंग खुशियों का,
अपनी झोली में भर लें।
तन मन में
रंग गीत का,
रंग मीत का,
फाग गाकर झूम लें।
गुलाल मल दे
बैर भूलकर,
बिन पानी के भी
चल हो लेंं गीले,
स्नेह रस जो गर पी लेंं।
रंगों का यह पर्व,
सदा लुभाता है हमें।
लाल,हरा, गुलाबी या
पीला हो गुलाल,
रंग भेद है दूर कर
प्रेम रंग से होते निहाल।
लाल,हरी,पीली,
नीली है हो - ली,
धरा फिर इस होली।
गुलाल संग आ,
चल खेलें होली।

            ......अर्चना सिंह जया

Sunday, March 8, 2020

नारी तू सशक्त है 💐

नारी तू सशक्त है [ कविता ]

             
नारी तू सशक्त है।
बताने की न तो आवश्यकता है
न विचार विमर्श की है गुंजाइश।
निर्बल तो वह स्वयं है,
जो तेरे सबल होने से है भयभीत।
नारी तू सशक्त है
धर्म-अधर्म की क्या कहें?
स्त्री धर्म की बातें ज्ञानी हैं बताते
पुरुष धर्म की चर्चा कहीं,
होती नहीं कभी अभिव्यक्त है।
नारी तू सशक्त है।
देवी को पूजते घरों में,
पर उपेक्षित होती रही फिर भी।
मान प्रतिष्ठा है धरोहर तेरी,
अस्तित्व को मिटाती औरों के लिए
नारी तू सशक्त है /
तू ही शारदा ,तू लक्ष्मी,तू ही काली
धरा पर तुझ-सी नहीं कामिनी।
तेरे से ही सृष्टि होती पूर्ण यहाॅं,
भू तो गर्व करता रहेगा सदा।
नारी तू सशक्त रही
और तू सशक्त है सदा।
      ...... अर्चना सिंह जया
Happy Womens Day💐😊

Saturday, February 1, 2020

रिश्तों के खुशबू

वक्त आज क्या से क्या
देखो है हो चला।
ओहदे बढ़ते गए और
दिल सिमट सा गया।
मकान छोटे से बड़ा
और भी बड़ा
धीरे धीरे होता गया।
पर घर के सदस्य
न जाने कब कम
 होते चले गए।
कमरे दो से चार हुए,
पर अपनोंं के लिए जगह
फिर भी न निकाल पाए।
 सिमटते गए रिश्ते
और उलझने बढ़ती गई।
जीवन में रंग न भर पाए
अपने व औरों के कभी।
दीवारों की भी रंगत
फीकी पड़ती गई।
बदल बदल कर
 दिवाली पर पुताई करवाई।
फिर भी रिश्तों के रंग
गहरे ना हो फीके पड़ते गए।
ठहाके गूँजते थे कभी,
खामोशियों ने डाला है वहाँ डेरा।
वो घर धीरे धीरे कब
मकानों में तबदील हो गए?
रिश्तों के ताना बाना
शनैः शनैः उधडते ही गए।
लाख जतन कर भी
रिश्तों के खुशबू उड़ से गए।





Thursday, January 30, 2020

जय माँ शारदा प्रार्थना

जय माॅं शारदा! [प्रार्थना]


जय माॅं शारदा।
हे माॅं! वागेश्वरी
विद्या-बुद्धि दायनी
चरणों में अर्पित पुष्प नमन।
कर जोड करते वंदना हम।
हे माॅं! वीणापाणी
जय माॅं शारदा।
मुख पर तेज ज्ञान का
सद्भावना की करे हम याचना।
अज्ञानता दूर की है प्रार्थना।
हे माॅं! महाश्वेता
जय माॅं शारदा।
पद्मासना विराजती
शत्-शत् करते उपासना।
प्रातः सदैव करते आराधना।
हे माॅं! हंसवाहिनी,
जय माॅं शारदा!
ज्ञान ज्योति के प्रसार से,
सुगम पथ हमारा करना।
आशीष की कृपा कर देना।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर,
हे माॅं! सरस्वती आशीष देकर,
दामन खुशियों से भर देना।
                   ............ अर्चना सिंह जया

Sunday, January 26, 2020

हमारा देश

जल,थल,नभ में देखो
आज तिरंगा है, लहराया।
भाईचारे व विभिन्नता में
फिर से है, एकता दर्शाया।
भिन्न-भिन्न हैं रंग जहाँ 
भिन्न-भिन्न यहाँ हैं बोलियाँ।
शहीदों के समक्ष सदा
नत मस्तक होता है जहाँ।
वो देश है हिन्दुस्तान 
जिस पर रहता नाज़ सदा।
गगन धरा भी गुनगुना उठी
जय हिंंद, जय हिंद का गानकर।
आओ देश का सम्मान करें
संविधान, तिरंगा का मान रख।
उदार मन है धरती का
अंबर सा हृदय है जिसका।
आन,बान व शान 
है हमारे देश के गणतंत्र का।

Monday, January 13, 2020

उत्सव,उल्लास है लाया कविता

उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]

 पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता
 ‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
 कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
 ‘‘खेतों में हरियाली आई,
 पीली सरसों देखो लहराई।
 खरीफ फसल पकने को आयी,
 सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
 नववर्ष का देख हो गया आगमन,
 पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
 पवित्र स्नान कर, देव को नमन
 अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
 चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल।
 लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
 पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
 एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
 अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
 तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
 बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
 पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
 बादलों को चल आएॅं छूकर ।
 रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
 प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
 दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
 त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।  
         
               ------------- अर्चना सिंह‘जया’