Monday, January 22, 2018

जय माॅं शारदा! [प्रार्थना]


जय माॅं शारदा।
हे माॅं! वागेश्वरी
विद्या-बुद्धि दायनी
चरणों में अर्पित पुष्प नमन।
कर जोड करते वंदना हम।
हे माॅं! वीणापाणी
जय माॅं शारदा।
मुख पर तेज ज्ञान का
सद्भावना की करे हम याचना।
अज्ञानता दूर की है प्रार्थना।
हे माॅं! महाश्वेता
जय माॅं शारदा।
पद्मासना विराजती
शत्-शत् करते उपासना।
प्रातः सदैव करते आराधना।
हे माॅं! हंसवाहिनी,
जय माॅं शारदा!
ज्ञान ज्योति के प्रसार से,
सुगम पथ हमारा करना।
आशीष की कृपा कर देना।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर,
हे माॅं! सरस्वती आशीष देकर,
दामन खुशियों से भर देना।
                   ............ अर्चना सिंह जया


Friday, January 12, 2018

उत्सव,उल्लास है लाया ( कविता )

उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]

 पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता  
 ‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
 कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
 ‘‘खेतों में हरियाली आई,
 पीली सरसों देखो लहराई।
 खरीफ फसल पकने को आयी,
 सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
 नववर्ष का देख हो गया आगमन,
 पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
 पवित्र स्नान कर, देव को नमन
 अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
 चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल,
 लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
 पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
 एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
 अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
 तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
 बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
 पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
 बादलों को चल आएॅं छूकर ।
 रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
 प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
 दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
 त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।    
           
               ------------- अर्चना सिंह‘जया’

Sunday, December 31, 2017

भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता )

भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता ):                      गुजरे कल को कर शीश नमन, मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।          वसंत के आगमन से पिहु बोल उठा,          फिर स...

Monday, December 18, 2017

Kya Kahta Hai India.!! Great Show


https://www.youtube.com/watch?v=GRRcvmFKzXc
https://www.youtube.com/watch?v=GRRcvmFKzXc

I witnessed and enjoyed an enthusiastic show..on 15th Dec..!!
"Kya Kahtaa Hai India" on Zee News

Saturday, December 9, 2017

अपना उल्लू सीधा करते

अपना उल्लू सीधा करते
देश के नेता ही,हमें हैं छलते।
घूम गली-गली नेतागण
करते दिन रात प्रचार जहाॅं।
दिन में भी सपने दिखलाते 
ठग का करते व्यापार वहाॅं।
बेचारी जनता समझ नहीं पाती
किस बात को सच वो समझे ?
किस बात को चाल यहाॅं ?
किस्सा कुर्सी का मन में लिए
नेता बने बहेलिया यहाॅं।
जनता की भावनाओं से 
नित करते खिलवाड़ यहाॅं।
मर्म समझ आती नहीं इनको
राह बदलना, वचन तोड़ना
भाषण देकर भ्रमित है करना।
धर्म-जाति के नाम पर
खेला करते हैं सत्ता तंत्र यहाॅं।
सुरक्षा, शिक्षा ,बेरोजगारी
कहाॅं समझते वे अपनी जिम्मेदारी?
रोटी,कपड़ा और मकान बस
इतनी ही चाहत है हमारी मजबूरी।
लुभावने भाषण हमें सुनाकर
दिग्भ्रमित करने की कोशिश करते,
रंगा सियार बन चुनाव दंगल में
अपना उल्लू सीधा करते। 
                 ...................अर्चना सिंह जया

Monday, November 20, 2017

बेटी का जन्म ( कविता )


बेटी का जन्म ( कविता )

  
न जाने मुझे ये कैसा भ्रम हुआ ?
गॉंव घरों में बॅंटते देख लड्डू
मैंने पूछा,‘आज कैसा शगुन हुआ?’
हॉं,‘आज एक बेटी का जन्म हुआ।’
चलो देर से ही सही,नया पहल हुआ।
बेटी बचाने की जागरुकता तो आई,
मानवता की सोच, कुछ तो बदल पाई।
माता पिता के दिलों में, जश्न  दीप
चहुदिशा  करने लगे प्रदीप्त ।
ये जानकर मन को सुकून हुआ,
बेटियों के सपने भी अब सॅंवरने लगे।
रियो ओलंपिक का प्रभाव देखो हुआ.
सिंधु, साक्षी व दीपा की चाह दिलों में हुई।
बेटियों को मिला सम्मान अपने ही घरों में
और देश विदेश की देखो शोभा हुई।
पुत्री भी कर सकती, वंश का नाम रौशन
जो परिचय दे. वो महिला सशक्तिकरण।
अवनी, भावना व मोहना ने अंतरिक्ष तक
देश के ध्वज को दिया सम्मान,
पिता के दिलों में गर्व ने लिया स्थान,
‘मानुषी ’ जैसी पुत्री ने बढ़ाया मान ।
देश की बालाओं को देकर हाथ
आओ दिखाएॅं उन्हें पाठशाला का मार्ग ।
बेटी को बचाना ही मात्र नहीं है उद्देश्य,
शिक्षित कर उन्हें बनाना है और सशक्त।
पुत्री के जन्म पर भी होंगे नृत्य-संगीत
जनसंचार में लहरा देंगे यह नव संदेश।

                              ............  अर्चना सिंह ‘जया’

Tuesday, November 14, 2017

बाल दिवस [ कविता ]


बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं 
बच्चों के संग बच्चे बनकर,
अपना खोया बचपन पाएॅं।
टाॅफी ,गुब्बारे ,पतंग संग
बीते पल को वापस लाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅ मनाएॅं।
बच्चे ही हैं राष्ट् निर्माता
आओ मिलकर भविष्य सवारें।
14 नवम्बर को ही मात्र नहीं,
हरदिन  मुस्कानों को सजाएॅं।
बच्चों संग अपने गम भुलाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं।
कागज़ की कश्ती बनाकर
आओ औंधी छतरी में तैराएॅं।
बच्चों के हाथों सौंप कल को,
' नेहरु ' के सपने साकार बनाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं
बच्चों के संग बच्चे बनकर,
अपना खोया बचपन पाएॅं।
     
                    ................ अर्चना सिंह जया