उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]
पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता
‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
‘‘खेतों में हरियाली आई,
पीली सरसों देखो लहराई।
खरीफ फसल पकने को आयी,
सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
नववर्ष का देख हो गया आगमन,
पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
पवित्र स्नान कर, देव को नमन
अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल,
लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
बादलों को चल आएॅं छूकर ।
रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।
------------- अर्चना सिंह‘जया’
‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
‘‘खेतों में हरियाली आई,
पीली सरसों देखो लहराई।
खरीफ फसल पकने को आयी,
सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
नववर्ष का देख हो गया आगमन,
पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
पवित्र स्नान कर, देव को नमन
अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल,
लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
बादलों को चल आएॅं छूकर ।
रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।
------------- अर्चना सिंह‘जया’